Naga Sadhu Latest News : प्रयागराज महाकुंभ से नागा साधुओं का प्रस्थान शुरू हो गया है। सभी अखाड़ों ने अपनी-अपनी ध्वजाओं की डोर ढीली कर दी है। विदाई के समय साधु-संन्यासी भावुक हो जाते हैं, और उनकी विदाई कढ़ी-पकौड़ी के भोज के साथ होती है।
Naga Sadhu Kyu Ja Rahe Hai: प्रयागराज महाकुंभ का मेला 26 फरवरी को अंतिम स्नान के साथ संपन्न होगा, लेकिन महाकुंभ की शोभा बनाए रखने वाले 13 अखाड़ों के प्रस्थान का समय आ गया है। बसंत पंचमी के दिन अंतिम अमृत स्नान के बाद अखाड़ों ने कढ़ी-पकौड़ी के भोज के साथ महाकुंभ मेले से विदाई लेना शुरू कर दिया है।
बैरागी संप्रदाय के पंच निर्वाणी अखाड़े के करीब 150 साधु-संत बसंत पंचमी के अगले ही दिन कढ़ी-पकौड़ी का भोज करके प्रस्थान कर चुके हैं। वहीं, नागा संन्यासियों का जूना अखाड़ा भी कढ़ी-पकौड़ी के भोज के साथ विदाई की तैयारी में है।
महाकुंभ में शामिल हुए 13 अखाड़े:
प्रयागराज महाकुंभ में सन्यासी (शिव के उपासक), बैरागी (राम और कृष्ण के उपासक) और उदासीन (पंच देव के उपासक) संप्रदाय के सभी 13 अखाड़े शामिल हुए थे।
कढ़ी-पकौड़ी का महत्व और Naga Sadhu की भावुकता:
अखाड़ों के साधु-संन्यासी विदाई के समय कढ़ी-पकौड़ी का भोज करते हैं। यह परंपरा उनकी भावुकता को दर्शाती है, क्योंकि कुंभ में मिलने के बाद यह तय नहीं होता कि वे फिर कब मिलेंगे। जब कढ़ी-पकौड़ी बनने लगती है, तो सभी साधु एक-दूसरे से मिलते हैं और अपने सुख-दुख साझा करते हैं।
कुंभ के बाद साधु-संन्यासी कहां जाते हैं?
जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीमहंत नारायण गिरि के अनुसार, साधु-संत काशी की ओर प्रस्थान करेंगे, जहां वे महाशिवरात्रि तक रुकेंगे। वहां शोभा यात्रा निकालकर काशी विश्वनाथ का दर्शन करने के बाद मसाने की होली खेलेंगे और गंगा में स्नान करेंगे। इसके बाद वे अपने-अपने मठों और आश्रमों को लौट जाएंगे।
बैरागी अखाड़े के कुछ साधु-संत अयोध्या और वृंदावन जाते हैं, जहां वे भगवान राम के साथ होली खेलते हैं। उदासीन और निर्मल अखाड़े के Naga Sadhu -संत पंजाब (आनंदपुर साहिब) की ओर प्रस्थान करते हैं। श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के संत महात्मा प्रयागराज के कीडगंज स्थित अखाड़ा के मुख्यालय में जाएंगे, जहां वे शिवरात्रि तक रुकेंगे और फिर भ्रमण पर निकल जाएंगे।
पूर्णमासी (माघी पूर्णिमा) से पहले प्रस्थान:
जूना अखाड़ा के श्रीमहंत नारायण गिरि ने बताया कि बसंत पंचमी के बाद माघी पूर्णिमा और महाशिवरात्रि का स्नान आम श्रद्धालुओं के लिए होता है। अखाड़ों के साधु-संत इन स्नानों के लिए महाकुंभ में नहीं रुकते, इसलिए पूर्णमासी (माघी पूर्णिमा) से पहले ही सभी साधु-संत यहां से प्रस्थान कर जाते हैं।
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