क्या AI इंसानों से बेहतर सोच सकता है? जानिए डिजिटल युग में इंसानी दिमाग और AI के बीच की असली लड़ाई

Humans vs AI: आज का युग तकनीक और डेटा का है, और इस दौर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) हर क्षेत्र में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रहा है। फिर चाहे वो बिजनेस हो, हेल्थकेयर, फाइनेंस, सरकारी नीति निर्माण या फिर रक्षा क्षेत्र—

Humans vs AI who is best

Humans vs AI who is best

Humans vs AI who is best

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भागीदारी तेजी से बढ़ रही है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या AI वाकई इंसानों से बेहतर निर्णय लेने में सक्षम है?

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डेटा एनालिसिस में AI की जबरदस्त ताकत

कैम्ब्रिज जज बिजनेस स्कूल के हालिया शोध बताते हैं कि जब बात डेटा-आधारित फैसलों की होती है, तो AI इंसानों से कहीं आगे है।

एक बिजनेस सिमुलेशन में, जो ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री पर आधारित था, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने भारी मात्रा और विविधता वाले डेटा का विश्लेषण कर कम लागत में तेज़ी से प्रोडक्ट डिजाइन किए। साथ ही, बाजार में आते बदलावों के अनुसार खुद को बेहतर ढंग से ढाला।

हेल्थकेयर की बात करें तो, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित डायग्नोस्टिक टूल्स ने कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों की जल्दी और सटीक पहचान करके परंपरागत तरीकों को पीछे छोड़ दिया है। इससे साफ ज़ाहिर होता है कि बड़े और जटिल डेटा को समझने व प्रोसेस करने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की पकड़ बेहद मजबूत है।

रणनीति और नैतिक फैसलों में अब भी इंसानों की जीत

हालांकि, जब बात रणनीतिक सोच, नैतिक फैसलों और अनिश्चित परिस्थितियों में तत्काल निर्णय लेने की होती है, तो AI की सीमाएं साफ दिखती हैं।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मुख्य रूप से ऐतिहासिक डेटा पर काम करता है, इसलिए यह नए और अप्रत्याशित हालातों में फेल हो सकता है। एक स्टडी के मुताबिक, जब ऑटो इंडस्ट्री में अचानक बाज़ार में बदलाव आया, तो AI आधारित CEO स्थिति को संभाल नहीं पाए। इसके उलट, इंसानी लीडर्स ने लचीलापन दिखाया और रणनीति को तुरंत मोड़ा।

इससे यह साबित होता है कि इमोशनल इंटेलिजेंस, अनुभव और नैतिकता जैसे मानवीय गुण आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में अभी भी नहीं हैं।

क्या AI इंसानों जैसा रचनात्मक हो सकता है?

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की एक और सीमा है: क्रिएटिविटी यानी रचनात्मकता। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के 2024 के एक अध्ययन में इंसानों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को मिलाकर रचनात्मक टीम बनाई गई। शुरुआत में अच्छे रिजल्ट्स मिले, लेकिन समय के साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा दिए गए आइडिया में गहराई और नयापन खत्म होने लगा।

एक अन्य रिपोर्ट में पाया गया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा बनाए गए विज्ञापन स्लोगन भले ही टेक्निकल रूप से सही थे, लेकिन उनमें भावनात्मक अपील और मानव स्पर्श की कमी थी। यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रचना कर सकता है, लेकिन उसमें वो “दिल छू लेने वाली बात” नहीं होती जो इंसानों की सोच से आती है।

लोग अब भी इंसानों के फैसलों पर ज्यादा भरोसा करते हैं

एक विस्तृत सर्वे से पता चला कि लोग अब भी इंसानी फैसलों को प्राथमिकता देते हैं, भले ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के पास ज्यादा डेटा और बेहतर एल्गोरिद्म क्यों न हों।

खासकर बुजुर्गों की बात करें तो वे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर असहज हैं—या तो उन्हें तकनीक की समझ नहीं है या वे भरोसा नहीं कर पाते। इसका मतलब यह है कि सिर्फ तकनीकी सुधार काफी नहीं हैं, लोगों के सोचने और समझने के तरीके में भी बदलाव लाना होगा।

इंसान और AI—मुकाबला नहीं, साझेदारी ज़रूरी है

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस निस्संदेह डेटा प्रोसेसिंग, ऑटोमेशन और तेज़ निर्णय लेने में अव्वल है, लेकिन नैतिकता, रचनात्मकता, रणनीति और भावनात्मक समझ के मामले में इंसानों की कोई तुलना नहीं।

भविष्य उन्हीं संगठनों और समाजों का है जो इंसानों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को एक साथ मिलाकर संतुलन से काम लेंगे—जहां मशीनें डेटा प्रोसेस करें और इंसानी सोच उसे दिशा दे।

Rohit Singh
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