Richa Ghosh Struggle Story: भारतीय महिला क्रिकेट टीम की स्टार विकेटकीपर-बल्लेबाज़ ऋचा घोष (Richa Ghosh) आज क्रिकेट की दुनिया में बड़ा नाम बन चुकी हैं। अपनी ताबड़तोड़ बल्लेबाजी और शांत स्वभाव के लिए जानी जाने वाली ऋचा ने वो मुकाम हासिल किया है, जिसके पीछे कड़ी मेहनत, पिता का त्याग और सालों का संघर्ष छिपा है।
Richa Ghosh Struggle Biography: हाल ही में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ महिला वनडे विश्व कप में ऋचा घोष ने 94 रनों की विस्फोटक पारी खेली, जिससे उन्होंने रिकॉर्ड बुक में अपना नाम दर्ज करा लिया। वह नंबर 8 पर उतरकर सबसे बड़ा व्यक्तिगत स्कोर बनाने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बन गईं।
क्रिकेट के प्रति जुनून और पिता का त्याग
Richa Ghosh NetWorth: पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में जन्मी ऋचा घोष के पिता मानवेंद्र घोष (Manabendra Ghosh) खुद एक क्लब क्रिकेटर और कोच थे। उन्हीं की बदौलत ऋचा ने बचपन से ही क्रिकेट को करीब से देखा।
जहां ऋचा रहती थीं, वहां महिला क्रिकेट का ज्यादा प्रचलन नहीं था, इसलिए उन्होंने शुरुआत में लड़कों के साथ क्रिकेट ट्रेनिंग ली। लड़कों के साथ खेलने से उन्होंने गेंद की गति, उछाल और परिस्थितियों को समझना सीखा।
पिता मानवेंद्र घोष ने बेटी को क्रिकेटर बनाने के लिए अपना बिजनेस तक छोड़ दिया और उनके साथ कोलकाता में रहकर ट्रेनिंग पर फोकस किया। उस समय वे पार्ट-टाइम अंपायरिंग भी करने लगे ताकि बेटी के सपने पूरे हो सकें।
पिता बनाना चाहते थे टेबल टेनिस खिलाड़ी
शुरुआत में Richa Ghosh के पिता उन्हें टेबल टेनिस खिलाड़ी बनाना चाहते थे, क्योंकि उनके शहर में लड़कियों के लिए क्रिकेट अकादमी नहीं थी। उन्होंने ऋचा को टेबल टेनिस की ट्रेनिंग में भेजा, लेकिन ऋचा का मन वहां नहीं लगा।
उन्होंने पिता से कहा — “मुझे क्रिकेट खेलना है।”
यह सुनकर पिता ने उन्हें क्लब ले जाना शुरू किया, और वहीं से उनकी क्रिकेट यात्रा की असली शुरुआत हुई।
कोलकाता में ट्रेनिंग और पहला बड़ा मौका
जब ऋचा ने क्रिकेट में दिलचस्पी दिखाई, पिता उन्हें कोलकाता लेकर गए, जहां Bengal Cricket Association के कैंप में लड़कियां भी लड़कों के साथ ट्रेनिंग करती थीं। ऋचा की मेहनत और हुनर को देखकर कोच भी प्रभावित हुए।
कुछ ही सालों में Richa Ghosh बंगाल की अंडर-19 टीम में चुनी गईं। पिता ने उनके साथ हर कदम पर साथ निभाया — न सिर्फ कोच बनकर, बल्कि एक सपोर्ट सिस्टम की तरह।
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16 साल की उम्र में भारत के लिए डेब्यू
ऋचा घोष ने सिर्फ 16 साल की उम्र में भारत की टी20 टीम में डेब्यू किया। उन्हें ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ त्रिकोणीय सीरीज़ में पहला इंटरनेशनल मैच खेलने का मौका मिला।
इसके तुरंत बाद उन्होंने आईसीसी टी20 वर्ल्ड कप 2020 में भी हिस्सा लिया, जहां भारत उपविजेता रहा। हालांकि उस टूर्नामेंट में उन्हें ज्यादा मौके नहीं मिले, लेकिन उनका संयम और डेडिकेशन टीम मैनेजमेंट की नजरों में आ गया।
रिकॉर्ड तोड़ बल्लेबाज़ी और नई पहचान
आज Richa Ghosh महिला क्रिकेट की हार्ड हिटर बल्लेबाजों में गिनी जाती हैं। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ वनडे विश्व कप में उन्होंने 94 रनों की ऐतिहासिक पारी खेलकर यह साबित कर दिया कि वह बड़े मौकों पर खुद को साबित करना जानती हैं।
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सिर्फ 22 साल की उम्र में ऋचा घोष ने जो मुकाम हासिल किया है, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा है।
निष्कर्ष
ऋचा घोष की कहानी सिर्फ क्रिकेट की नहीं, बल्कि संघर्ष, समर्पण और पिता के त्याग की कहानी है।
जहां एक पिता ने बेटी के सपनों के लिए अपना करियर छोड़ा, वहीं बेटी ने मेहनत से उन्हें गर्व महसूस कराया।
Richa Ghosh आज हर उस लड़की के लिए प्रेरणा हैं, जो समाज की सीमाओं को तोड़कर अपने सपनों को साकार करना चाहती है।
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