कैलाश मानसरोवर: हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख… चारों धर्मों के लिए क्यों खास है किसके लिए क्या धार्मिक महत्व है Mount Kailash !

Kailash Mansarovar Yatra ! मानसरोवर झील, हिमालय की गोद में बसी वो पवित्र झील है, जिसे देवताओं का स्नान स्थल माना गया है। कहा जाता है कि इस झील में एक बार डुबकी लगाने मात्र से पाप धुल जाते हैं और मनुष्य भवसागर से पार हो जाता है। और यही नहीं, कैलाश पर्वत— जिसे भगवान शिव का स्थायी निवास कहा गया है— इस झील के पास ही स्थित है।

कैलाश मानसरोवर: हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख... चारों धर्मों के लिए क्यों खास है किसके लिए क्या धार्मिक महत्व है Mount Kailash !

Mount Kailash Legends Yatra ! इन दोनों स्थानों का उल्लेख ना केवल हिंदू धर्म, बल्कि जैन, बौद्ध और सिख धर्म की परंपराओं में भी गहराई से मिलता है। भारत ही नहीं, तिब्बत, नेपाल, चीन और पूरे विश्व में इन्हें एक दिव्य तीर्थस्थल के रूप में पूजा जाता है।

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पांच साल बाद फिर शुरू हुई Kailash Mansarovar Yatra

कैलाश मानसरोवर: हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख... चारों धर्मों के लिए क्यों खास है किसके लिए क्या धार्मिक महत्व है Mount Kailash !

पांच वर्षों की प्रतीक्षा के बाद एक बार फिर कैलाश मानसरोवर यात्रा की शुरुआत हो चुकी है। यह यात्रा केवल एक भौगोलिक सफर नहीं, बल्कि आत्मा की गहराइयों तक जाने वाला अनुभव है। यह सनातन परंपरा के सबसे कठिन, पवित्र और रहस्यमयी तीर्थों में से एक है।

मानसरोवर झील: मन से प्रकट हुआ जलरूप

कैलाश मानसरोवर: हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख... चारों धर्मों के लिए क्यों खास है किसके लिए क्या धार्मिक महत्व है Mount Kailash !

Kailash Mansarovar का नाम ही बहुत कुछ कहता है। यह झील ‘मन’ यानी ब्रह्मा के हृदय की कल्पना से उत्पन्न मानी जाती है। वैष्णव परंपरा में मान्यता है कि भगवान विष्णु की भक्ति में बहाए गए आंसुओं को ब्रह्मा ने अपने कमंडल में संजोया, और कालांतर में उसी से मानसरोवर झील की रचना हुई।

यह वह स्थान है जहां माता पार्वती स्नान करती हैं, और जहां पवित्र गंगा, भगवान विष्णु के चरणों से निकलकर शिव की जटाओं में समाहित होकर यहीं उतरती है।

भवसागर से मुक्ति का मार्ग

भवसागर— यह शब्द पुराणों में बार-बार आता है। यह जीवन-मरण के चक्र, मोह-माया और सांसारिक जाल का प्रतीक है। जो व्यक्ति मानसरोवर में स्नान करता है, वह इस भवसागर से पार हो जाता है। यह आध्यात्मिक जागरण की शुरुआत है, जो अंततः मोक्ष यानी परम मुक्ति तक ले जाती है।

रामायण और महाभारत में भी कैलाश का गौरव

Kailash का उल्लेख रामायण में तब आता है जब रावण, प्रतिदिन कैलाश आकर भगवान शिव के दर्शन करता था। एक दिन उसने कैलाश को उठा ले जाने की कोशिश की, लेकिन महादेव ने सिर्फ अपने पैर के अंगूठे से पर्वत को दबा दिया और रावण के हाथ उसी में दब गए। उसी पीड़ा में रावण ने शिव तांडव स्तोत्र की रचना की, जिससे प्रसन्न होकर शिव ने उसे आशीर्वाद दिया।

महाभारत में भी पांडवों की कैलाश मानसरोवर यात्रा का वर्णन मिलता है, जहां वे आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए गए थे।

कुबेर की नगरी और रत्नों की दिशाएं

कैलाश मानसरोवर: हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख... चारों धर्मों के लिए क्यों खास है किसके लिए क्या धार्मिक महत्व है Mount Kailash !

कैलाश को कुबेर का निवास भी कहा गया है। जब रावण ने लंका से कुबेर को बेदखल किया, तब कुबेर कैलाश लौट आए और यहीं अपनी नई नगरी बसाई। पुराणों के अनुसार, Kailash को ब्रह्मांड का अक्ष माना गया है— एक ऐसा केंद्र, जहां से चारों दिशाएं निकलती हैं:

दक्षिण – नीलमणि

पूर्व – स्फटिक

पश्चिम – माणिक

उत्तर – स्वर्ण

शाक्त परंपरा और 51 शक्तिपीठों में एक

शाक्त परंपरा में कैलाश को देवी सती का शक्तिपीठ माना गया है। मान्यता है कि यहीं पर देवी का दाहिना हाथ गिरा था। इसलिए यह स्थान तप, साधना और शक्तिपूजा का सर्वोच्च स्थल माना गया है।

कल्पवृक्ष: जहां कल्पना से जन्म होता है

मानसरोवर के तट पर ही स्थित है पौराणिक कल्पवृक्ष। यही वह स्थान है जहां देवी पार्वती ने अपनी कल्पना मात्र से पुत्री अशोक सुंदरी को जन्म दिया। बाद में, इसी कल्पवृक्ष के नीचे उन्होंने गणेश को भी उबटन से बनाया और कल्पना की कि वह सजीव हो जाए। और वही गणेश, सभी देवताओं में प्रथम पूज्य बन गए।

हरिवंश पुराण: तीर्थों का तीर्थ कैलाश

हरिवंश पुराण में Kailash को समस्त तीर्थों का सार बताया गया है। श्रीकृष्ण स्वयं इसके महत्व को रेखांकित करते हुए कहते हैं कि यहां:

  • ऋषियों का तप
  • कुबेर की पूजा
  • शिवजी का निवास
  • और गंगा-यमुना, कर्णाली जैसी नदियों की उत्पत्ति होती है।
  • इसे तीर्थराज कहा गया है।

बौद्ध धर्म में कैलाश का अवलोकितेश्वर रूप

बौद्ध धर्म में कैलाश को अवलोकितेश्वर यानी करुणा और ज्ञान के प्रतीक देवता का निवास माना गया है। यह बोधिसत्व, बुद्ध का एक रूप है, जो “हर किसी को देखने वाला ईश्वर” माना जाता है। ओम मणि पद्मे हुम्’ मंत्र इसी भावना को प्रकट करता है।

बौद्ध अनुयायी मानते हैं कि पद्मासंभव ने कैलाश में तप किया और बॉन धर्म के अनुयायियों को परास्त कर वहां बौद्ध धर्म की नींव रखी।

बॉन धर्म और कैलाश

बॉन धर्म, जो तिब्बती बौद्ध धर्म से भी प्राचीन माना जाता है, उसमें कैलाश को गंग रिनपोछे यानी उत्कृष्ट रत्न कहा गया है। यहां के लोग इसे सिपाईमेन देवी का निवास मानते हैं और इसे एक महाशक्ति स्थल के रूप में पूजते हैं।

जैन धर्म में अष्टपद और निर्वाण स्थल

जैन धर्म में Kailash को मेरु पर्वत के रूप में पूजा जाता है, जिसे धरती की रीढ़ यानी ‘ऋजु’ कहा जाता है। मान्यता है कि पहले तीर्थंकर ऋषभदेव जी ने यहीं अष्टपद नामक पर्वत पर निर्वाण प्राप्त किया था। जैन ग्रंथों में यह स्थान अधिभौतिक और आधिदैविक शक्ति का संगम कहा गया है।

सिख परंपरा में कैलाश की यात्रा

सिख धर्म में गुरु नानक देव जी की यात्राओं में कैलाश मानसरोवर की यात्रा का उल्लेख मिलता है। उन्होंने उदासियों (यात्राओं) के दौरान यहां यात्रा की और एक ईश्वर (एक ओंकार) के संदेश का प्रसार किया। उनका संदेश था — प्रेम, समानता और शांति।

देवत्व की ओर ले जाने वाली राह

कैलाश-मानसरोवर सिर्फ एक तीर्थ नहीं, यह एक दृष्टिकोण है — जीवन को समझने का, आत्मा को जानने का, और ईश्वर से जुड़ने का। यह ऐसा स्थान है, जहां प्रकृति और परमात्मा का मेल होता है। यहां की यात्रा सिर्फ शारीरिक नहीं, एक आध्यात्मिक चढ़ाई है, जो हमें स्वयं के केंद्र की ओर ले जाती है।

यह बर्फ से ढका पर्वत, यह शांत जलराशि — हमें याद दिलाते हैं कि हम सिर्फ शरीर नहीं, बल्कि चेतना हैं, जो ईश्वर से जुड़ सकती है।

निष्कर्ष:

Kailash और मानसरोवर वो केंद्र हैं जहां धर्म, आस्था, अध्यात्म और विज्ञान, सब एकसाथ खड़े मिलते हैं। यहां का हर पत्थर, हर लहर, हर झोंका — ईश्वर का स्पर्श लिए हुए है। और यही इसे केवल तीर्थ ही नहीं, देवत्व की सीढ़ी बना देता है।

Shah Shivangi
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