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Doom Scrolling क्या है? रील्स स्क्रॉल करने की आदत कैसे दिमाग को कमजोर बना रही है

Doom Scrolling Meaning in Hindi: सोशल मीडिया आज कंटेंट का सबसे बड़ा समुद्र बन चुका है। एक मिनट में आपको इतने रील्स और वीडियो मिल जाते हैं कि बहुत से लोग उन्हें बिना सोचे-समझे बस स्क्रॉल करते चले जाते हैं।

Doom Scrolling क्या है? रील्स स्क्रॉल करने की आदत कैसे दिमाग को कमजोर बना रही है
Image Source By Pinterest (Brain Rot क्या है,what is Doom Scrolling)

Brain Fog from Social Media: यह आदत अब सिर्फ समय बर्बाद करने वाली नहीं रही, बल्कि ये आपके दिमाग को अंदर से थका रही है। इसे ही ‘डूम स्क्रॉलिंग’ कहा जाता है, जो धीरे-धीरे आपको ‘ब्रेन रॉट’ जैसी स्थिति की ओर ले जा सकती है।

Social Media Effects on Brain : आज हर चीज़—खाना बनाना, तैयार होना से लेकर किसी टॉपिक की नॉलेज—सब कुछ 30 सेकंड की शॉर्ट वीडियो में परोसा जा रहा है। कंटेंट की इस बाढ़ के कारण लोग अपने दिन का बड़ा हिस्सा बस रील्स देखते हुए बिताने लगे हैं। लेकिन लगातार ऐसा करते रहना दिमाग की क्षमता पर सीधा असर डालता है।

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क्या है ‘ब्रेन रॉट’?Doom Scrolling

Reels Scrolling Side Effects: ब्रेन रॉट’ शब्द Gen-Z स्लैंग के रूप में शुरू हुआ, लेकिन अब यह एक वास्तविक मानसिक स्थिति के रूप में देखा जा रहा है। यह ध्यान कम होने, फोकस की कमी, ब्रेन फॉग, सीखने की क्षमता कमजोर होने और छोटे-छोटे कामों में भी दिमाग थकने जैसी समस्याओं को दर्शाता है।

शॉर्ट वीडियो की लगातार स्टिमुलशन दिमाग को ओवरलोड करती है, और धीरे-धीरे दिमाग़ तुरंत मिलने वाले डोपामाइन का आदी बन जाता है।Doom Scrolling

रील्स दिमाग पर कैसे असर डालती हैं?

हर बार जब आप स्क्रीन पर उंगली घुमाते हैं और नया वीडियो सामने आता है, तो दिमाग में डोपामाइन रिलीज होता है। यही वही प्रक्रिया है जो किसी भी लत में दिखाई देती है। इसलिए रील्स स्क्रॉल करना सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि ‘इंस्टेंट डोपामाइन’ की आदत बन जाती है।

NeuroImage में प्रकाशित एक स्टडी बताती है कि लगातार शॉर्ट वीडियो देखने से दिमाग के ग्रे मैटर पर भी असर पड़ सकता है। इससे व्यक्ति में इमोशनल अस्थिरता, आसानी से चिढ़ जाना, जानकारी को धीरे-धीरे प्रोसेस करना और परिणामों की अनदेखी जैसी समस्याएँ दिख सकती हैं।

कैसे बदलता है दिमाग?

71 रिसर्च स्टडीज के एक बड़े विश्लेषण में पाया गया कि शॉर्ट वीडियो की लत ध्यान की क्षमता को कमजोर कर देती है। सेल्फ कंट्रोल घटता है, स्ट्रेस और एंग्जायटी बढ़ती है। दिमाग तेज उत्तेजनाओं का आदी हो जाता है और सामान्य गतिविधियों में मज़ा नहीं आता।

दिमाग को हर कुछ सेकंड में फोकस बदलने की आदत पड़ जाती है, जिससे पढ़ाई, काम, बात करना और सोचने तक पर असर पड़ता है।Doom Scrolling

नींद पर सबसे ज्यादा असर

रील्स की लत का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि यह आपकी नींद खराब कर देती है। रात में लगातार स्क्रॉलिंग करते रहने से नींद की गुणवत्ता गिरती है, अगला दिन थकान, चिड़चिड़ापन और कम फोकस के साथ शुरू होता है। यही चीज़ धीरे-धीरे मानसिक सेहत पर बड़ा असर डालती है।Doom Scrolling

क्या ‘ब्रेन रॉट’ रोका जा सकता है?

अच्छी बात यह है कि दिमाग लचीला होता है और आदतें सुधार सकता है। बस सही सीमाएँ तय करने की जरूरत है। धीरे-धीरे रील्स का समय कम करें, फोन नाइट टेबल से दूर रखें, खाने के समय मोबाइल बंद रखें और सोने से एक घंटा पहले स्क्रॉलिंग पूरी तरह बंद कर दें।

स्क्रीन टाइम के बदले कुछ नई हेल्दी गतिविधियाँ जोड़ें—पढ़ना, पेंटिंग, संगीत सुनना या थोड़ी देर वॉक पर जाना दिमाग को शांत करता है।

महत्वपूर्ण बात है कि समझें आप रील्स क्यों देखते हैं—बोरियत, अकेलापन या तनाव? अगर हां, तो इस खालीपन को भरने के लिए किसी दोस्त से बात करना, जर्नलिंग या बाहर घूमना बेहतर विकल्प हो सकते हैं।

निष्कर्ष

रील्स देखना गलत नहीं है, लेकिन इसकी अधिकता दिमाग को ओवरस्टिमुलेट करती है। इससे ध्यान, समझ और निर्णय लेने की क्षमता कमजोर होती है। सही बाउंड्रीज़ सेट करके, स्क्रीन टाइम को सीमित करके और हेल्दी आदतें अपनाकर आप ‘ब्रेन रॉट’ जैसी समस्याओं से खुद को पूरी तरह बचा सकते हैं।

Katyani Thakur
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सीनियर डिजिटल कंटेंट प्रोड्यूसर जन्मस्थली राजस्थान है और कर्मस्थली तीन राज्य के कई शहर रहे हैं। 2021 में प्रिंट मीडिया से करियर की शुरुआत की। पत्रकारिता की शुरुआत स्थानीय समाचार पत्र और न्यूज चैनल you tube से की। इसके बाद अटल साहित्य, भारतटॉक , भारत की बात जैसे बड़े वेबसाइट होते हुए PowersMind तक का सफर तय किया। हर दिन कुछ नया सीखने और बेहतर करने की लगन। विशेष रुचि स्वस्थ, लाइफ स्टाइल, और सकारात्मक खबरों में।

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