Dhadak 2 Review:: इस बार जातिवाद और नारी सशक्तिकरण पर है फोकस, लेकिन क्या दिल भी जीत पाई फिल्म?

फिल्म का नाम: Dhadak 2

कलाकार: सिद्धांत चतुर्वेदी, तृप्ति डिमरी, साद बिलग्रामी, सौरभ सचदेवा, प्रियांक तिवारी, विपिन शर्मा, अनुभा फतेहपुरा

निर्देशक: शाज़िया इकबाल

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Dhadak 2 Review:: इस बार जातिवाद और नारी सशक्तिकरण पर है फोकस, लेकिन क्या दिल भी जीत पाई फिल्म?

पहली झलक: इस बार कुछ तो बदला है…

2018 की ‘धड़क’ ने ‘सैराट’ जैसी सशक्त फिल्म का रीमेक बनकर बहुतों को निराश किया था। न तो जातिवाद की गहराई थी और न ही हकीकत की वो सच्चाई। लेकिन Dhadak 2, जो इस बार तमिल फिल्म ‘परियेरम पेरुमल’ पर आधारित है, काफी हद तक यह कोशिश करती है कि पिछली गलती ना दोहराई जाए।

इस बार निर्देशन संभाला है शाज़िया इकबाल ने और कहानी में दलित संघर्ष, जातिगत भेदभाव और नारी सशक्तिकरण जैसे अहम मुद्दे मजबूती से गूंथे गए हैं। लेकिन सवाल यही है – क्या सिर्फ मैसेज काफी है? क्या ये फिल्म आपको भावनात्मक रूप से भी छूती है? आइए जानते हैं।

Dhadak 2 की कहानी: प्यार, जाति और संघर्ष की जंग

नीलेश अहिरवार (सिद्धांत चतुर्वेदी) एक दलित बस्ती से निकला लड़का है जो बचपन से ही अन्याय और भेदभाव का सामना करता रहा है। उसकी मां चाहती है कि वो वकील बने और अपने हक की लड़ाई खुद लड़े।

वहीं विधि भारद्वाज (तृप्ति डिमरी) एक ब्राह्मण परिवार से आती है जहां तीन पीढ़ियों से वकालत खून में बह रही है। नीलेश और विधि की मुलाकात एक शादी में होती है और धीरे-धीरे ये दोस्ती यूनिवर्सिटी में जाकर प्यार में बदल जाती है।

इस प्रेम कहानी की राह आसान नहीं है, क्योंकि सामने है विधि का कजिन रॉनी (साद बिलग्रामी), जो जाति के अहंकार में जीता है और नीलेश को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ता।

 

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फिर कहानी में आता है शंकर (सौरभ सचदेवा), जो हॉनर किलिंग करता है — वो प्रेमियों को मारता है जो जातिगत दीवारें लांघते हैं। विधि के परिवार वाले उसी शंकर की मदद लेते हैं। अब सवाल है, क्या नीलेश इस जातिवादी सोच के खिलाफ खड़ा हो पाएगा? क्या वो अपने प्यार और आत्म-सम्मान के लिए लड़ पाएगा?

दिखावे से हटकर या फिर वही पुरानी बातें?

Dhadak 2 में दलित संघर्ष को कई स्तरों पर दिखाया गया है।

शेखर (प्रियांक तिवारी) का किरदार यूनिवर्सिटी में दलित स्टूडेंट्स के लिए आवाज उठाता है।

नीलेश की मां बस्ती की प्रधान हैं, जो साहस और लीडरशिप का प्रतीक हैं।

नीलेश का पिता महिलाओं की वेशभूषा में नाचने का काम करता है, जो समाज की रूढ़ियों पर सवाल उठाता है।

इन सबकी कहानियां नीलेश के चरित्र को और मजबूती देती हैं। लेकिन यहां फिल्म कुछ ज्यादा ही ‘मैसेज-सेंटरिक’ हो जाती है। ऐसा लगता है जैसे फिल्म अपना संदेश ज़बरदस्ती ठूंसना चाहती है — हर फ्रेम में बाबासाहेब की फोटो, हर दीवार पर नीला रंग, हर कमरे में गौतम बुद्ध की तस्वीरें — ये सब अब कुछ ज़्यादा ही ‘डायरेक्ट’ हो गया है।

लव स्टोरी: प्यार है, पर दिल नहीं छूता

Dhadak 2 2’ जातिवाद की सच्चाई दिखाने में इतनी व्यस्त हो जाती है कि उसकी मूल लव स्टोरी प्रभावित होती है। नीलेश और विधि के बीच की केमिस्ट्री उतनी गहराई नहीं दिखा पाती, जितनी इस थीम के लिए जरूरी थी।

विधि का किरदार, जो कि एक ब्राह्मण लड़की का है, दलित लड़के के साथ प्यार तो करती है, लेकिन वो प्रेम कितना समझदार और मजबूत है, ये फिल्म नहीं दिखा पाती। कुछ मौकों पर उसका रवैया भ्रमित और कमजोर लगता है।

एक्टिंग: एक्टर्स ने बचाई फिल्म Dhadak 2

सिद्धांत चतुर्वेदी ने पूरी मेहनत की है, खासतौर पर क्लाइमैक्स में उनका परफॉर्मेंस बहुत प्रभावी है।

तृप्ति डिमरी का अभिनय ठीक है, लेकिन स्क्रिप्ट ने उन्हें कुछ खास करने का मौका नहीं दिया।

प्रियांक तिवारी (शेखर) और सौरभ सचदेवा (शंकर) का काम लाजवाब है — सौरभ तो फिल्म की जान हैं।

विपिन शर्मा और अनुभा फतेहपुरा जैसे अनुभवी कलाकार भी अपने छोटे किरदारों में गहरी छाप छोड़ते हैं।

कहने का तरीका थोड़ा पुराना लगता है

फिल्म में दिखाए गए मुद्दे बेहद जरूरी और संवेदनशील हैं, लेकिन उनका प्रस्तुतिकरण उतना सिनेमाई या सूक्ष्म नहीं है, जितनी आज की ऑडियंस उम्मीद करती है।

बैकग्राउंड स्कोर और गाने अच्छे हैं लेकिन कहानी की रफ्तार को कई बार धीमा कर देते हैं।

स्क्रीनप्ले सेकंड हाफ में थोड़ा बिखरता है और कुछ सीन बहुत मैन्युअल लगते हैं।

अंत में: क्या देखें ‘धड़क 2’?

अगर आप सिर्फ एक प्रेम कहानी देखने जा रहे हैं, तो शायद ये फिल्म आपको अधूरी लगे। लेकिन अगर आप सिनेमा में सामाजिक सच्चाई और दलित संघर्ष की गहराई देखना चाहते हैं, तो ‘धड़क 2’ ज़रूर देखनी चाहिए।

फिल्म की सबसे बड़ी ताकत इसके ईमानदार कलाकार और गंभीर मुद्दों से भिड़ने की कोशिश है। कमजोर राइटिंग और कुछ पुराने ट्रीटमेंट के बावजूद, ये फिल्म अपने संदेश को ठीक से डिलीवर करने में कामयाब होती है।

रेटिंग: ⭐⭐⭐ (3/5)
देखें अगर: आप जातिवाद और सामाजिक भेदभाव पर आधारित गंभीर विषयों पर बनी फिल्में पसंद करते हैं।

“इस बार दिल से नहीं, सिस्टम से लड़ाई है – ‘Dhadak 2‘ सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं है!”

Arpna Dutta
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