Maha Kumbh Kalpwas 2025: महाकुंभ में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम तट पर कल्पवास करने का विशेष महत्व है। इस पवित्र अवसर पर देश के विभिन्न भागों से हजारों श्रद्धालु एक महीने तक संगम तट पर रहकर कल्पवास का संकल्प लेते हैं।
कल्पवास को आत्म-शुद्धि की तप साधना माना गया है। साधु-संतों के लिए यह जीवन का हिस्सा होता है, लेकिन ग्रहस्थ लोग इस दौरान संयमित और अनुशासित जीवन जीने का अभ्यास करते हैं।
कल्पवास का अर्थ
Maha Kumbh Kalpwas mehtav and kalpwas niyam : ‘कल्प’ का मतलब है युग, और ‘वास’ का अर्थ है रहना। इसका मतलब है किसी पवित्र स्थान पर कठिन तपस्या और वैराग्य भाव से प्रेरित होकर एक निश्चित समय तक रहना। यह आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग माना जाता है।
कल्पवास के नियम
शास्त्रों में कल्पवास के 21 नियम बताए गए हैं। इन नियमों का पालन किए बिना कल्पवास पूर्ण नहीं माना जाता।
कल्पवास के दौरान झूठ नहीं बोलना चाहिए।
घर-गृहस्थी की चिंता छोड़कर एकाग्र भाव से साधना करनी चाहिए।
प्रतिदिन गंगा में तीन बार स्नान करना अनिवार्य है।
गंगा किनारे शिविर में रहना चाहिए और शिविर में तुलसी का पौधा लगाना चाहिए।
ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है।
बाहर का खाना न खाकर स्वयं या पत्नी के हाथ का बना भोजन ग्रहण करना चाहिए।
सत्संग और उपदेश में भाग लेना चाहिए।
पूरे महीने जमीन पर सोना चाहिए, पलंग का त्याग करना होता है।
स्वल्पाहार या फलाहार का सेवन करें।
सांसारिक चिंता से मुक्त रहें।
इंद्रियों पर संयम रखें।
पितरों के लिए पिंडदान करें।
अहिंसा का पालन करें और विलासिता का त्याग करें।
Maha Kumbh में कल्पवास के लाभ
कल्पवास करने से व्यक्ति जीवन और मृत्यु के बंधनों से मुक्त होने का अनुभव करता है। माघ महीने में संगम तट पर एक महीने तक रहकर स्नान और तपस्या करने से अपार पुण्यफल की प्राप्ति होती है। यह कहा गया है कि कल्पवास के दौरान स्नान का फल करोड़ों गायों के दान के बराबर है। इसलिए पौष पूर्णिमा से माघ महीने तक कल्पवास का विशेष महत्व है।
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